तुम्हारे पिता ने, तुम्हें, अपने अंतिम समय में
एक मुट्ठी खूबसूरत तितलियाँ देते हुए
कहा था,
तुम्हें सोचना है अपनी धरती के बारे में,
काम आएँगी तितलियाँ
तब से,
धरती के एक हिस्से में
झाड़ियाँ उग आई हैं,
फ्रेडरिख़ ने सोचा सिर्फ तितलियों के बारे में,
उनके बारे में सोचना,
बंजर होती धरती,
और जीवन में रंग के बारे में सोचना है।
( फ्रेडरिख़ स्नेटाचेक जूनियर , नैनीताल जनपद के भीमताल कस्बे के एक छोटे गाँव में रहते थे। मूलतः जर्मन , किंतु बहुत वर्षों से वहीं के होकर रह गए।)